Thursday 22 March 2012

मैं खुद के लिए लिखती हूँ
फिर वो सब के लिए कैसे हो सकता है
और अगर मैं सब के लिए लिखती हूँ 
फिर वो मेरा कैसे हो सकता है 
मैं किस के लिए लिखती हूँ 
मेरा श्रोता कौन है
अक्सर होता यूँ है
मैं लेखक, और मैं ही श्रोता 
होता यूँ भी है
दूसरों के लिखे हुए में भी
मैं थी लेखक और मैं ही श्रोता 

6 comments:

  1. यह रचना अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब है ....
    शुभकामनायें तृप्ति !

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  2. खुद से अच्छा श्रोता और पाठक कोई नहीं हो सकता। क्योंकि इस तरह खुद की कमियाँ भी दिखाई देंगी और उन्हें दूर करने का रास्ता भी।


    सादर

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  3. जो पन्ने पर उतर आई वो सबके लिए होती है ...जो सुन सका वो श्रोता नहीं तो वो है कुछ खोता !

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  4. :) pasand aayi mujhe yeh baat...bahaut bahaut shukriya :)

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Kavyitri ko rat race kha gyi!

woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main  corporate kha gya us kavriti ko  par weekends to mere hain,  choices to meri hain  corporate me...