Thursday 17 November 2011

Kuch Bhi


छुप के मिलना यहाँ हमारी कमज़ोरी समझा जाता है
बेइंसाफी सहना सहनशीलता का प्रमाण 

दूसरों के मामले में दखल न देना समझदारी
चाहे दूसरा आपका सगा, खून का ही क्यूँ न हो

औरों की मदद करना अपना वक्त बर्बाद करना है 
अनजान से बात करना महापाप 
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छुपा दो  हमका, बिठा दो हमको, ढक दो हमें , जला दो हमको
ख़तम कर दो किस्सा, जाओ अपने घर
तुम्हारा खुदा तुम्हारी राह देखता होगा 
देखता होगा की तुम आये की नहीं सलामत 


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मेरे देश में 
ये पुल बड़े काम के हैं 
ऊपर गाडी - घोड़े दौड़ते हैं 
और नीचे जिंदगियां 
-चाय, पुडी, नाई, मोची
टीवी, घर, बच्चे, ज़िन्दगी 

रात में यही पुल पलंग बन जाते हैं
यही वो गरीब बेख़ौफ़ सोता है

खुदा भी जिसकी खेर नहीं लेता, 
यह पुल हर रात, हर रोज लेता है 


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स्याही घिस-घिस कर पन्ने नीले करती हूँ मैं,
कभी तो कुछ अच्छा लिखूं  इस आस में लिखती हूँ मैं
दो लाइन  rhyme में आने पर ख़ुशी मानती हूँ  मैं
और फिर आगे कुछ नही लिख पाती हूँ मैं
लिखना छोड़ दूँ या ख़ुशी मनाना ?

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मैं अधपकी हूँ
मुझे में ज्यादा समझ नहीं

मैं ज्यादा सोचती नहीं
और कभी कभी मैं ज्यादा बोलती भी नहीं

मैं भागूं तो जग भागे
मैं गाऊं तो जग गाए
ऐसी मेरी कोई तमन्ना नहीं

मैं लिखूं तो जग पढ़े
ऐसी मेरी औकात नहीं

मैं लिखूं और मुझे पसंद ना आये
ऐसा अक्सर होता नहीं //

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आज फिर शाम आई
आज फिर अकेली ही चली गयी/
मैंने उसे कभी जल्दी में नहीं देखा
हाथ हिला के बुलाओ तो देखना आ भी जाएगी
एक प्याला चाय का रख ज़रा पूछो उससे
कितना कुछ कह देगी
एक मैं ही हूँ जो छुपा जाती हूँ

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सब रंग मेरे हैं
सब मौसम मेरे हैं
वो इन्द्रधनुष मेरा 
रात मेरी, दिन मेरा, 

यह सब होते हुए भी
मैं कहीं और ही busy थी
ये बच्चे मेरे, ये पति मेरा,
ये ज़मीन मेरी, ये पैसा मेरा



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स्याही सूख गयी कलम की
कितना वक्त हुआ कुछ लिखा जो नहीं

शाम होने को आ गयी
मेरे मन की कब शाम होगी
कब शाम होगी कि मैं सवेरा ला सकूँ

दिमाक तो थकना नहीं, दिल को ही थमना होगा
पर दिल से जिए ही कहाँ हैं
दिल से जीते तो खुद को जीते
ये किसकी ज़िन्दगी ओढ़ रखी है
जो किराए के घर सी महसूस होती है





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यहाँ हर घर मजदूर का बनाया हुआ होता है
इस मजदूर का अपना घर अक्सर नहीं होता है

जिसने सैंकड़ों  घर बनाये हो 
खुद के लिए एक घर नहीं बना पाता
जो ताउम्र दूसरों के लिए घर बनाता हैं
अक्सर सड़कों पर ही मर जाता हैं


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romance हर चीज़ में है
हर उम्र, infact  हर पल में है
romance  करो हर रात से, हर दिन , हर किताब , हर बात से

ऊपर बहुत अकेलापन है
मेरे पुराने नीचे जो रह गए
नीचे शोर था, ज़िन्दगी थी
यहाँ सिर्फ मैं, अकेली मैं हूँ

मुझे किसी की ज़रुरत कहाँ,
मैं तो खुद में ही खूब हूँ

मेरी कश्ती कहाँ गोते खाती है
आखिरी वक्त पर ही ये क्यूँ मुकुर जाती है

ज़िन्दगी से क्यूँ ये बार-बार धोखा खाती है
रोई रातों को क्यूँ पहले खुद उठती है फिर मुझे उठाती है

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जीना भी बस एक आदत
ही तो बन जाता है
आदत जिसे हम बिना सोचे- पूछे
निभाये जाते हैं

आदमी खुद कहाँ जीता है
आदतें जीती हैं
आदमी आदतों का ढेर बन जाता है
फिर जीना या न जीना बराबर ही है

जीना आदत है
ना जीने की चाह रखना
भी एक आदत जान पड़ती है

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बातें, बातों से बातें और ढेर सारी बातें 
कभी बात से बात की है?

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खुद के साथ वक्त बिताना भी एक कला है 
खुद का वक्त खुद ही खाना भी एक कला है
मुझ में कुछ भी स्थायी नहीं
भावनाएं, आदतें,बातें, 
किस्से सुनना और सुनाना दोनों ही मज़ेदार है 
किस्से कहना और बनाना  दोनों ही कला है

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रात दिन रात दिन आते जाते हैं 
मेरी उम्र खाते जाते हैं

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मैंने जो माँगा मुझे मिला,
कोई होगा मुझ सा खुशनसीब !
जब मैंने ही मांगी गलत चीज़,
फिर उसे कह दूंगी - नसीब !

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मैंने तुम्हे सुना, मैंने उसे देखा
सुना, देखा, judge किया
मैंने खुद को ना  देखा, ना सुना
ना कभी judge किया

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आप अपने दिल की बात ठुकरा नहीं सकते
दिल सुनने की आदत डालो
मर्ज़ पकड़ो और सवाल करो
जितना सीधा सवाल होगा
उतना ही सीधा होगा जवाब

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रात दिन, रात दिन का ये चक्कर,
उड़ा ले जाता है पूरी ज़िन्दगी
उन्ही रास्तों और बातों  के घेरे
में दम तोड़ देती है ये ज़िन्दगी

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दिल घुमक्कड़, तो इंसान घुमक्कड़
एक जगह ना टिकना is घुमक्कड़
जिसका हर जगह ही घर बसाने  का मन करे
वो है घुमक्कड़

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दो लफ्ज़ कहने थे, दो बातों में उलझ गए,
हर ख्याल उलझा सा, हर बात अटकी सी

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वो ख्याल ही इतना प्यारा था की हम बातों में ना सजा पाए
वो रात ही इतनी हसीन थी की सुबह होने की हमें परवाह ही कहाँ थी

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जब जीने में मज़ा आने लगे समझ जाओ वही असल जीना है
बाकी सब मुर्दा दिन हैं, मुर्दा रातें हैं और आस-पास चलती लाशें

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कुछ मर गया, कब का
किसी की तो मौत हुई, किसी साल
कोई तो है जो नहीं जीता
कोई तो था जो अब नहीं है

ज़िन्दगी इतनी बेमतलब, इतनी नीरस, इतनी खोई हुई सी कब हो गयी
आत्म की मौत कब हो गयी
ये जीना मुझे रास नहीं, कोई मरने का वक्त और पता बता दे

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आओ ज़िन्दगी चुने
मेरे सामने कई पत्ते हैं
कई तरह की ज़िन्दगी के
आओ एक पत्ता चुने
आओ ज़िन्दगी चुने

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अपनी ज़िन्दगी खोटा सिक्का निकली
जहाँ चाहा, वहीँ नहीं चली

अपनी ज़िन्दगी ऐसी निकली
जैसे नल की टूटी
खुद से ही बहते पानी का हिसाब नहीं

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रात और रातों की हर बात
बात और बातों में छुपे सवाल
सवाल औए सवालों में लिपटे ख़याल
ख़याल और अनगिनत ख्यालों में सिमटा संसार

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यादें क्या होंगी?
अगर कोई याद ही न करे
यादों का तो कोई gender नहीं होता
कोई confirm quality नहीं होती
यादें तो याद करने वालों से हैं
उनकी मेहेरबानी से हैं

Wednesday 16 November 2011

सूरज


वो जलता गोला-सा सूरज
मंद होता, फीका पड़ता-सा सूरज

मैं चाहती हूँ रोक लूँ
यहीं आसमान में इसे
मैं नहीं चाहती रात हो,
फिर कल हो

मैं कहती जा रही हूँ
ये जाता जा रहा है
इसके ढलने पर मेरे कहने का
कोई जोर नहीं

मैं ऐसी ही बन जाना चाहती हूँ
एकदम सूरज जैसी

ढलता हुआ सूरज ही इतना प्यारा क्यूँ लगता है
दिन भर जब वो सिर पर खड़ा था
नज़र भर भी न देखा तुमने उसकी तरफ
फिर शाम को ही क्यूँ सब farewell party देने आ जाते हैं
दिन चाहे कितना ही सुहावना रहा हो
हम बैठे सूरज को नहीं निहारते

फिर वही सूरज जब शाम को ढलने लगता है
सब आनंद लेकर उसे विदा करते हैं
जाती हुई चीज़ को देखकर
कैसे प्रेम उमड़ता है मन में

हर वो चीज़ जो पैदा हुई है, उसे ख़त्म होना है
मैं भी उन में से एक हूँ, यह सूरज, ये चाँद भी

Tuesday 15 November 2011

'मैं' और 'कुछ'


आसमान मुझे बाहों में लेके
समुन्दर का छोर दिखा दे इस बार
हवाएं मुझे कुछ तो दिखा दे इस बार

कुछ खटकता है
कुछ अटका सा है
कुछ उदास है
कुछ भटकता सा है
कुछ पूछता है कोई
कुछ जवाब नहीं देता कोई
कुछ दुखता है कहीं
मैं और ये कुछ - कुछ भी अलग नहीं
'मैं' पता नही कौन है
पर ये 'कुछ' कोई तो है
जो भटकता है यहीं-कहीं  

to momma ...with love for being the most unbiased mother ever


मेरे चार बच्चे
सबसे सुन्दर कौन?
मेरे चार बच्चे
सबसे गोरा कौन?
मेरे चार बच्चे
सबसे तेज कौन?
कौन कौन कौन ?
मैं कौन?
माँ या कोई और?

boski

उस नन्ही-सी जान को मेरा सलाम 
जो अभी मेरी बहन के पेट में है 

मैं अभी से क्या वादे करूँ  
की हम तुझे इतना प्यार करेंगे
या उतना दुलार करेंगे
की तू हमारी आँखों का तारा होगी

पर कुछ सलाहें हैं इस मासी के पास -

तू कभी ना मानना हमारी बात
तू करना अपने मन की
तू ना जीना हमारी तरह
तू ना बनना हमसा 
तू जाना जहाँ तेरा दिल ले जाये
तू मदमस्त जीना और खूब जीना 

तू लड़ना , तू ढूँढना 
तू गिरना तू फिर उठना
तू पूछना और खूब पूछना 
तू घूमना और खूब घूमना 
तू ना बनना हमसा, तू ना जीना हमसा
तू जाना जहाँ तेरा दिल ले जाये
मैं अभी से तुझे क्या कहूँ
की तू हमें कितनी प्यारी है 

to chikki ji ...with love

वो बच्चे स्कूल जाते हुए, 
वो मर्द दफ्तर,
वो परिवार घूमने जाता हुआ, सब साथ लिए जाते हैं 
पानी की बोतल 

पहले ढूँढी जाती है, 
धोई जाती है 
फिर कभी-कभी fridge में रखी जाती है 
पानी की बोतल 
 :) :) :) 

to karl kraus


"hate must make a man productive. Otherwise one might as well love" Karl Kraus
यह कैसा गम है
जो दिल बार- बार सहता है
क्या गलती हमारी है?
जो हमें बार बार ठेस पहुंच रही है
नफरत है तो फिर ठेस कैसी
emotion की purity तो हो
नफरत है तो मुझे
सिर्फ नफरत है

if u hate a person, you hate something in him that is part of yourself. What isn't a part of ourselves doesn't disturn us-Hermann Hesse 

आदत ही मौत है


आदतन  ही हम कुछ बोल देते हैं
और फिर पछताते हैं
आदतन ही हम लड़ लेते हैं
और फिर उन्हें भूलने की कोशिश में लगे रहते हैं
आदतन ही हम किसी को नापसंद करते रहते हैं
और शिकायत करते हैं की मुझे शांति चाहिए
आदतन ही हम दिनों साल गुज़ार देते हैं
और फिर मरने की घडी टालते रहते हैं
इस आदत को ख़त्म  कर दो
कोई चीज़ आदत ना  रहे
आदत ही मौत है
आदत का होना ही इंसान की मौत है


आज फिर


आज फिर कलम उठायी
आज फिर कुछ लिख न पाई

आज फिर जी चाहा उड़ जाऊं , भाग जाऊं
आज फिर यहीं इसी कमरे में सो गयी

आज फिर गुस्सा आया
आज फिर उसे ज़ाहिर किया

आज फिर मौका मिला और उसका लुफ्त उठाया
आज फिर दबे हुए को और दबाया

आज फिर दोस्तों की याद आई, बात आई
आज फिर उन्हें फ़ोन न मिलाया

आज मैं एक दिन और बूढी हो गयी
आज एक दिन और मौत के करीब पहुंच गयी

आज फिर खुद से पूछा
आज फिर खुद से जवाब छिपाया

reborn


शुक्र है की मौत पूछ कर नहीं आती
मौत इतनी बेवकूफ नहीं

मुझे कोई, कोई एक इंसान दिखाए
जो ख़ुशी से कहे- मैं जी लिया
अब मरना चाहता हूँ
सब असलियत से वाकिफ हैं
जानते हैं मौत को टालना उनके बस में नहीं
सो यूँ भरे दिल से नाटक करते हैं
जैसे वो तैयार हैं

पूछे कोई उनके दिल पे हाथ रखकर
फिर से जीना चाहोगे?
जो न किया, वो करना चाहोगे?
जहाँ नहीं गए, वहां जाना चाहोगे?
जो नहीं बने, वो बनना चाहोगे?

जीने की चाह एक स्वस्थ दिल में
 अन्दर तक पैठ किये  होती है
और यह अच्छी बात है
हर वो इंसान जो जीना चाहता है
जीना उसका अधिकार है

सबकी मौत ऐसी ही होती है
मानो तुमने कोई नर सिंघार किया हो
और तुम्हे मरने की सज़ा दी गयी हो
तुम मरना नहीं चाहते और जानते हो
की इससे बच भी नहीं सकते

अगर मौत खुद मरते हुए को
कान में आकर कहे -
'अगर जीना है, तो भाग ले
मैं पीछे नहीं आऊँगी '
सभी मरतों का जन सैलाब भागता हुआ मिलेगा
सब जीना चाहते हैं
वो बनना चाहते हैं जो ना बने
वहां जाना चाहते हैं, जहाँ ना गए


i wander


उस दिन यूँ हुआ
बंद मुट्ठी खोल दी मैंने
जो चीज़ें सालों से दबाए हुए थी
उन्हें ढील दे दी मैंने

उस दिन यूँ हुआ
कि मैं भागी
किसी से दूर नहीं
और किसी के पास नहीं

उस दिन से, मैं भटकी -
किसी की तलाश में नहीं
यहाँ हर तलाश बेमानी है,
धोखा है

मैं भटकी - देखने के लिए,
सुनने के लिए,
छूने के लिए,
मैं भटकी- ना कुछ पाने के लिए,
ना कुछ छोड़ने के लिए

जब तक कदम चलें, मन करे - मैं चलूँ
जब थकूं, तो रुकुं और फिर चलूँ

जब मौत यूँ आए कि जीने का ही एक हिस्सा थी - यूँ मरुँ मैं

मैं भटकी और दूर - दूर भटकी //

Monday 14 November 2011

पहले कौन बुरा था ?


तुम ऐसी जगह पे ला देते हो, जहाँ से मैं
ना प्यार करने लायक रह जाती हूँ , ना नफरत

तुम ही  लायक नही रह जाते मेरी नज़र में

बुरा  ये है - तुम्हारे साथ यूँ रहते-रहते
मैं खुद के भी काबिल नही रह जाती

बुरे के साथ रहोगे तो बुरा बन ही जाओगे
अटपटे के साथ रहोगे तो अटपटे बन ही जाओगे

फिर वक्त बीतने के साथ
यह भूलने लग जाते हैं या यूँ  कह लो
फर्क ही नहीं पड़ता की
पहले कौन बुरा था ?

अजीबों- गरीब सपने


सपने
अजीबों- गरीब
बेसिर-पैर के सपने

कभी चारपाई से गिराते
कभी चौक कर नींद से उठाते
कभी चुपचाप
एक के बीच में ही
दुसरे शुरू हो जाते- ये सपने

बड़ी से बड़ी बात भी
 छोटी मालूम होती है
तो कभी मामूली से मामूली बात का भी बतंगड़ बन जाता है
सपनों में

बरसों पहले भूले लोग मिल जाते हैं
तो इस जनम के अपनों का नामो-निशाँ भी नहीं रहता

खोब सोयो तो ज़रूर आते हैं यह सपने
अजीबों गरीब
बेसिर-पैर के ये सपने

to madi... with love


खोना, डूबना, भूल जाना, माफ़ी माँगना
पैर घिसट के चलना, रोना, चाय पीना,
यह है तो सब हसीं है, मैं भी और सामने वाला भी 

फुर्सत


फुर्सत
फुर्सत वहां  होती है जहाँ पीछे का गुज़र गया हो
और आगे की तुम्हे चिंता न हो

फुर्सत मुझे बड़ी मुद्दत से मिली

फुर्सत न चाहो तो कभी नहीं मिलेगी
और चाहो तो हर पल फुर्सत है

इतना फैलाओ ही ना की समेट ना पो
चाहो तो हर पल फुर्सत है

time and distance are cruel to everyone and it sure has changed our relationship-this sisterhood ....to my elder sis- who moved to another city right after marriage- with love

हम जो कभी बहुत करीब थे
साथ दिन काटते थे
आज हफ़्तों - हफ़्तों बात भी नहीं करते

हम जो कभी साथ थे, एक दोसरे को 'बचाया' करते थे,
आज दूर रहते हुए भी फ़ोन पे लड़ लेते हैं
हम जो कभी, जब साथ थे, खाने पे एक दुसरे का इंतज़ार करते थे
आज, सवेरे से उसने कुछ खाया की नहीं, पूछते भी नही

मैं जब साथ थी, किसे serve कर रही थी-
खुद को या उस 'साथ' को ?
खुद को- हर 'साथ' में हम खुद को ही serve कर रहे होते हैं

साथ छुटा, और आदतें जो साथ पाली थी वो भी छुटी
कहा था कुछ न बदलेगा तेरे दूर  रहने से
पर सब बदल जाता है

अब हम लड़ते हैं, हफ़्तों सुध नहीं लेते, खाने का नहीं पूछते,
फोर्मल हो गए हैं हम,
कुछ कहने-पूछने से पहले दो बार सोचते हैं

और उसकी हर बात को याद रखते हैं
क्यूंकि इन दिनों हम कम बोलते हैं


Kavyitri ko rat race kha gyi!

woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main  corporate kha gya us kavriti ko  par weekends to mere hain,  choices to meri hain  corporate me...