Friday 12 September 2014

चाहत क्या होती है
किसी को चाहना क्या होता है?
किसी को पाने की मुराद क्या होती  है?

चाहत किस रंग की होती है?
किस तरंग की बनी होती है
किस ढंग से नसों में घुलती है
और दिलोदिमाग पे छा जाती है

चाहत क्या होती है?

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ये चाहत काले बदल है
बरस क्यों नही जाते
ये चाहत चाय में डूबा हुआ बिस्किट है 
गिर क्यों नहीं जाता :) 




Wednesday 2 July 2014

talaash

क्या खेल है यह दिल का 
खेल ही तो है यह 
दिल बिकता है यहाँ 
बोली भी लगती है बकायदा 
बातों के पुल बनते ढहते हैं यहाँ 
दिल टूटता है यहाँ 
फिर भी किसी का गिरेबान पकड़ के 
कोई कुछ नहीं कह सकता यहाँ 
अजीब हालात है यहाँ 
फिर भी सबकी तलाश
ज़ारी है यहाँ 

Friday 27 June 2014

तू अमीर और मैं गरीब क्यों

विचित्र देश है मेरा
सड़क पे दौड़ती चमचमाती गाड़ियां
और बगल में पसरी हुई गरीबी

उसकी आँखों में आँखें डाल कर  देखा है कभी
देखा है, जैसे पूछ रही हों तू अमीर क्यों और मैं गरीब क्युं
झिझक नहीं होती उनसे आँख मिलाने में
एक शर्मिंदगी का एहसास
यूँ देखना एक दूसरे को जैसे अलग अलग गृह के वासी हो
कोहतूलता दोनों तरफ है

भूख से कोई मर जाए
यह ख़याल कैसा है
काश जब मैं ज़्यादा खाऊं
एक गरीब आके मेरे हाथ रोक ले
क्या नहीं कर सकती मैं इनके लिए

हम सब कैसे व्यस्त हैं अपनी अपनी ज़रूरतों में
और फिर जब कोई गरीब दिख जाता है
तो ख़याल आता है कोई इतना अमीर तो कोई
इतना गरीब क्यों है
अगर ऐसा ही होता आया है इस दुनिया में
तो ऐसा होता क्यों है
पैसा किसी एक के पास रुकता क्यों है
किसी के पास रखने की जगह नहीं
तो किसी के पास कभी पर्याप्त आया ही नहीं
मैं जानती हूँ ऐसा है
पर ऐसा क्यों है?

काश मासी अपनी बिटिया को कह पाती
यह दुनिया उतनी ही हसीन है
जितना तेरी नन्ही आँखों को  दिख रही है







Monday 26 May 2014

बातें

क्या जानना चाहते हो मेरे बारे में
क्या ज़िन्दगी बिताना चाहते हो मेरे साथ
कितना पसंद करते हो तुम मुझे
90% ?
यह 10% का हाशिया बरकरार रखना
यह छूट मिलती रही मुझे नापसन्दीदगी की
इतने में अपने दिल की कर लूंगी मैं !!
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ग़ालिब न हुए होते तो कितने ही शायर न होते
और अगर गम न होते तो भी
कितने ही शायर न होते

लिखावट का गम से कोई रिश्ता है क्या?
लिखावट का अपनेपन से ज़रूर रिश्ता है
और खालीपन से?
आप खुद के लिए लिखते हो
आपकी रूह जो बोलती है
उसे पन्ने पे उकेर देते हो
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चाहत क्या होती है
किसी को चाहना क्या होता है?
किसी को पाने की मुराद क्या होती  है?

चाहत किस रंग की होती है?
किस तरंग की बनी होती है
किस ढंग में नसों में घुलती है
और दिलोदिमाग पे छा जाती है

चाहत क्या होती है?
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कितने ही लोगों को मैं ,
पेन और पेपर पकड़ाना चाहती हूँ
कितने ही लोगों के पास कितना कुछ है यहाँ 
लिखने को 
हज़ार भरेंगे पन्ने यहाँ ,
जब लिखेंगे ये कहानियाँ अपनी ज़िन्दगी की 



एक अदद पागल ढूँढ़ते हैं हम !!

पागलों से भरी दुनिया में एक अदद पागल ढूँढ़ते हैं हम 
कुछ खुद से अलग , कुछ खुद के जैसा- पागल ढूँढ़ते हैं हम 

भाई सुना आपने, पागल ढूंढ रहे हैं हम
बहुत समझदारी हो गयी
बहुत समझदारों का हो-हल्ला हो गया
समझदारों को निष्काषित करना चाहते हैं अब हम
एक अदद पागल ढूँढ़ते हैं हम

कहीं तुम्हे कोई पागल मिले
उसे छोड़ना मत
पागल बड़े करामाती होते हैं
पागल बड़े विस्मयकारी होते हैं
इन्ही पागलों की बस्ती में एक अलग सा पागल ढूँढ़ते हैं हम

वैसे इन दिनों मुझे सभी पागल लगते हैं
दुनिया शायद मेरी समझ से ज़्यादा समझदार हो गयी है
मेरी उमर के सभी लोग यही सोचते मिलते हैं
की "उसने मेरे दिल की जान ली तो क्या सोचेगी
की यह कितनी पागल है" !!
मज़ा आता है मुझे ऐसा सुन के,
सोच के की बिरादरी बढ़ रही है अपनी

पागल बड़े क्रांतिकारी होते हैं
पागलों की इज़्ज़त अलग है मेरी नज़र में 
सलाम ठोकूँगी हर पागल के सामने
तो कोई पागल मिले तो मिलवाइएगा ज़रूर
एक अदद पागल ढूँढ़ते हैं हम !!



सुपरफास्ट ट्रैन

मेरी ज़िन्दगी एक सुपरफास्ट ट्रैन में जा बैठी है
मैं स्टेशन पे पास रहती हूँ
तो रोज़ उसे देखती हूँ
ट्रैन हाथ हिला हिला के  मुझे बुलाती है
अब तक मैं सिर्फ देखती हूँ

पर ये फासला तय करने में वक्त नहीं लगता
बस आँख बंद करनी है
और निकल जाना है 

एक बार उस ट्रैन में चढ़ गयी
तो खुदबखुद सब खुलता जाएगा
यह परतें जो ओढ़ रखी हैं
बंद मुट्ठी, बातें, सोच
ज़िन्दगी सब संभाल लेगी

मेरी ज़िन्दगी एक सुपरफास्ट ट्रैन में जा बैठी है !!


तुम इतनी भी बुरी नहीं !!

ज़रा आँख बंद करना 
शायद कोई नज़र आए 
ज़रा आँख पे हाथ भी फेर लेना 
शायद सुकून आए 
ज़रा मुट्ठी कस लेना 
कहीं कुछ रिस ना जाए
ज़रा बालों को ढीला कर देना
थोड़ा बेसलीकी हो जाए
ज़रा ठिठक के आईने में देख लेना
शायद पहचान पाओ 
ज़रा खुद को ज़ोर से पकड़ लेना 
झूठी गर्माहट आये
ज़रा खुद कि पीठ सहला देना यार
की तुम इतनी भी बुरी नहीं !!







Friday 16 May 2014

अभिमन्यु

वो बचपन में ऊन के धागे
उँगलियों में फसा के
खेला करते थे ना
ज़िन्दगी कुछ वैसी ही
महसूस होती है इन दिनों मुझे

यह कैसे चक्करघिन्नी है
जिसमें घुस तो गयी हूँ मैं
पर इससे निकलना नहीं आता
क्या हम सब अभिमन्यु हैं ?
माँ के पेट से
बस आधा ही पाठ सीख के आये हैं?




Thursday 27 February 2014

बर्फ


जिसे  ढूँढ़ते हो वही नहीं मिलता 
जब ढूँढ़ते हो तब नहीं मिलता 
जो दिखते हो वो तुम हो नही 
जो बोलते हो क्या वो भी नहीं?
पहाड़ पे गिरी बर्फ क्यूँ नहीं बन जाते तुम 
कितने  धुले हुए दिखोगे जब सूरज चमकेगा तुम पर 




Saturday 15 February 2014

title - fair n lovely and olay

अपनी लड़कियों को इतना सहेज के क्यूँ रखते हो 
फसल ढकी रहेगी तो पकेगी क्या ख़ाक

जाने दो उन्हें धुप में 
होने दो उनका रंग काला 
जो तुम्हारे लिए काला है 
मेरे लिए सुनहरा है 
वैसे अब काले से भी डर कहाँ 
market  में fair n lovely सस्ती जो आने लगी है 
अब झुर्रियां और बेजान त्वचा का डर भी कोई डर है 
olay 7 in 1 अब हर उम्र के लिए जो आने लगी है 

अपनी लड़कियों को इतना सहेज के क्यूँ रखते हो 
दहेज़ कि तरह !!
अगर रक्षक बनने का इतना ही शौक है 
तो क्यूँ जाने देते हो उन्हें किचन में भी  
हादसे वहाँ भी हो सकते हैं 
सिलिंडर फट सकता है 
बालों में आग लग सकती है 
उनके बालों से बहुत प्यार है न तुम्हे 
इतना कि शादी से पहले ही कह डाला था कि बाल न कटवाना कभी 

पर मैं इतनी भी बेसमझ नहीं 
समझती हूँ 
वो cosmetic cream ही क्या, जो झूठा वादा न करे 
और वो society  ही क्या जो hypocrite  न हो 




उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी
























Title - उड़न तश्तरी  उड़न तश्तरी  उड़न तश्तरी  
उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी  उड़न तश्तरी  
आये मेरे घर की छत पे कभी 
और बैठा कर मुझे सैर पे ले जाए 
उड़न तश्तरी  उड़न तश्तरी  उड़न तश्तरी  

मैं जहाँ चाहूँ वहाँ उतारे 
मैं जब तक चाहूँ मुझे वहां रुकाए 
और फिर उड़ा ले जाए 
उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी 

मैं चाहूँगी जाना 
दीदी के घर, सीमा दीदी के घर-बॉम्बे 
मैं अपने बेटे को उस उड़न तश्तरी में 
साथ बिठा के, खुद से चिपका के 
ले जाऊँगी मधु मासी के घर 
उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी मेरी उड़न तश्तरी

मधु मासी कि ड्राइंग रूम कि खिड़की से 
हम होंगे दाखिल, वहाँ रुकेंगे खाएँगे पियेंगे 
और फिर निकल पड़ेंगे बॉम्बे कि और 

रास्ते में एक पेड़ पे मासी बेटी रुक जायेंगे 
ठंडी हवाएं किसी ऊंचे पेड़ कि मज़बूत डाली पे
बैठ कर हम खाएँगे 
मेरे बच्चे के घुंघराले बाल उस हवा से
और भी घुंघराले हो जायेंगे 
उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी

अब मासी अपने बेटे को उसके घर पे देगी छोड़ 
और बेटा अपनी मम्मी को देख कर 
हो जाएगा खुश और चिपक जाएगा मम्मी से..... 
अपनी toothy smile  लिए 

उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी उड़न तश्तरी
आये मेरे घर की छत पे कभी 

Thursday 13 February 2014

अगर घुमक्कड़ी का शौक है
तो ऑफिस में क्या बैठा है ?
जा कोई ट्रेन पकड़

अगर आशिक़ी का शौक है
तो दिल मार के क्यूँ बैठा है ?
जा इज़हार कर, जा किसी से प्यार कर

अगर लिखने का शौक है
तो कलम और पन्ना इतना दूऱ क्यूँ है ?
लिख कोई किताब , लिख अपनी कहानी

अगर सुनाने का शौक है
तो क्या सुनने वालों कि कमी है ?
वो तेरे गम भी सुनेंगे और फलसफे भी
वो साथ बैठेंगे भी और गुनगुनाएँगे  भी

अगर घुमक्कड़ी का शौक है
तो ऑफिस में क्या बैठा है ?







Kavyitri ko rat race kha gyi!

woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main  corporate kha gya us kavriti ko  par weekends to mere hain,  choices to meri hain  corporate me...