Friday 27 June 2014

तू अमीर और मैं गरीब क्यों

विचित्र देश है मेरा
सड़क पे दौड़ती चमचमाती गाड़ियां
और बगल में पसरी हुई गरीबी

उसकी आँखों में आँखें डाल कर  देखा है कभी
देखा है, जैसे पूछ रही हों तू अमीर क्यों और मैं गरीब क्युं
झिझक नहीं होती उनसे आँख मिलाने में
एक शर्मिंदगी का एहसास
यूँ देखना एक दूसरे को जैसे अलग अलग गृह के वासी हो
कोहतूलता दोनों तरफ है

भूख से कोई मर जाए
यह ख़याल कैसा है
काश जब मैं ज़्यादा खाऊं
एक गरीब आके मेरे हाथ रोक ले
क्या नहीं कर सकती मैं इनके लिए

हम सब कैसे व्यस्त हैं अपनी अपनी ज़रूरतों में
और फिर जब कोई गरीब दिख जाता है
तो ख़याल आता है कोई इतना अमीर तो कोई
इतना गरीब क्यों है
अगर ऐसा ही होता आया है इस दुनिया में
तो ऐसा होता क्यों है
पैसा किसी एक के पास रुकता क्यों है
किसी के पास रखने की जगह नहीं
तो किसी के पास कभी पर्याप्त आया ही नहीं
मैं जानती हूँ ऐसा है
पर ऐसा क्यों है?

काश मासी अपनी बिटिया को कह पाती
यह दुनिया उतनी ही हसीन है
जितना तेरी नन्ही आँखों को  दिख रही है







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