Friday 30 March 2012

औरत है कविता


कविता औरत है
बेबस, बेसहाय, प्रशंसा की प्यासी
बात बात पे हाशियों पे रख दी जाने वाली
ताउम्र मान न पाने वाली
खिलोनों की तरह पढ़ी जाने वाली
बाजारों की तर्ज़ पर मुशायरों/ब्लोग्स में नुमाइश लगाने वाली
चुचाप अपनी बारी का इंतज़ार करने वाली
उनके अहम् की प्यास बुझाने वास्ते बनने, मिटने वाली
झूटी शान के चलते इस्तेमाल की जाने वाली
जब चाहा छिटक के दूर कर दी जाने वाली

उसे आदत है बार बार छल्ली होने की
उसे आदत है फिर से सज के बैठ जाने की
कविता को नहीं पता उसकी परिसीमा क्या है
जितना लिखोगे, बढती जायेगी,
खिचती जायेगी, मरती जायेगी
बेबस लाचार कविता
औरत है कविता

7 comments:

  1. बहुत तीखा और अच्छा कटाक्ष!


    सादर

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  2. कविता औरत है
    बेबस, बेसहाय, प्रशंसा की प्यासी........
    ...उसे आदत है बार बार छल्ली होने की....
    ..बेबस लाचार कविता
    औरत है कविता
    प्रभावशाली है, अच्छा लगा

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  3. :) jee batane ka shukriya...maine hata liya hai ...kavita padhne ka bhi shukriya..

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  4. behad khoobsooratee se women depression ko uzagar kiya hai..bhaavpoorn prastuti.

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  5. :)women depression..i wish these were mere words...aapne padhi, uske liye bahaut bahaut shukriya...

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Kavyitri ko rat race kha gyi!

woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main  corporate kha gya us kavriti ko  par weekends to mere hain,  choices to meri hain  corporate me...