Wednesday 22 February 2012

यकायक

मैं खफा हूँ रात दिन से
वो मुझ से पूछ कर नहीं आते 
उन्हें पता नहीं किस चीज़ की जल्दी है
मेरी उम्र खाने की तो नही?
किस मिटटी के बने हैं वो
जो थकते भी नही?

यह रात दिन जिसे मैं मासूम समझा करती थी
ये तो कालचक्र निकले
इसने मेरी ऊँगली पकड़ ली है
और दौड़ा रहा है मुझे


ये मुझे मौत के दरवाज़े पे ला के ही दम भरेगा
उस दिन तो ज़रूर कुछ वक्त के लिए थमेगी मेरी ज़िन्दगी
जब महसूस करुँगी सामने खड़ी मौत को
एक लम्बी साँस ज़रूर लुंगी तब
मुझे ऐसे मौत न आये जो कुछ समझने का मौका ही न दे
मुझे यकायक मौत न आये
मैं थोड़ी देर घूरना चाहूंगी मौत को
महसूस करना चाहूंगी उस पल को
कितनी ही चीज़ें अधूरी होंगी
कितनी ही बातें कहनी बाकी


पर मैं मुस्कुराऊँगी, तुम देखना , उस वक्त
जब भी मुझे किसी बात या ख़याल पर मज़ा आता है
मैं यकायक मुस्कुराती हूँ 
उस वक्त मुस्कुराऊँगी मैं !!





2 comments:

  1. ना चिंता करो इतना
    जब जो होना है हो जाएगा
    जब तक भी है ज़िन्दगी
    मस्ती से जिए जाओ

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