Tuesday 21 February 2012

बदलाव

अन्दर बैठ कर खिड़की से
हवा की ताल पर झूमते पेड़ों को देखना
भरी दोपहरी में चिड़ियों की चहचहाट सुनना 
ऊपर छत पर सुख रहे
साबूदाने की चिप्स पलटने जाना 
नीचे आकर कुलर की हवा खाना 
किस्मत अच्छी हो तो रूहअफज़ा का लुफ्त उठाना 
यूँ पसंद है मुझे गर्मी की छुट्टियां 
यूँ पसंद है मुझे गर्मी की छुट्टियां 


लाइट जाने पे  हाथ पंखों से हवा करना
चने भुग्ड़े चाट बना कर खाना 
सोफ्टी वाले भैया की ३ बजे राह देखना 
उससे और चेर्री डालने की जिद करना

और कितना हसीन था वो दोपहर में सुस्ताना 
5 बजने पर चाय बनाना 
रोज़ शाम लॉन और पेड़ों में पानी देना
महोल्ले की औरतों का घर में जमावट 
वो रतजगा, वो गीत
वो मस्ती, वो अल्हड़पन 
मेरे बच्चे भी यूँ गर्मी की छुट्टियाँ बिताएंगे 
शक है मुझे 
कभी रुकेंगे ये बदलाव 
शक है मुझे 

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