Tuesday 21 February 2012

फुर्सत

फुर्सत
कहाँ हाथ में खुद आती है
फुर्सत 
कहाँ टेबल पे रखी पाई जाती है
-मर्दों के लिए रखे चाय के प्यालों की तरह
टेबल पे तो हमें धुल मिलती है
उसे साफ़ करें तो कहीं और मिलती है
ऐसे में फुर्सत कहाँ मिलती है

फुर्सत को भी priority बनाना पड़ता है
तब मिलती है
अँधा होना पड़ता है, धुल , अस्त-व्यस्तता के प्रति 
तब मिलती है
थोड़े से तानो के लिए दिल को कड़ा बनाना पड़ता है 
तब मिलती है

या तो मैं अच्छी गृहणी बन सकती हूँ 
या फुर्सत से जी सकती हूँ 

जिसका डर था 
वह रोग मुझे लग चूका है
सफाई के प्रति दीवानगी का
मैं पूरा दिन घर साफ़ कर सकती हूँ

इसीलिए मुझे घर बनाना पसंद नहीं 
बड़े घर बनाना तो बिलकुल नहीं
उनने बड़े-बड़े घर बनाये मोहल्ले में शान के लिए
हमारी उम्र बीत गयी उस शान को साफ़ रखने में

और कुछ ऐसे भी होते हैं 
जो रात को घर आकर बीवी से कहते हैं
की क्या करती हो पूरे दिन

सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है
यकीन मानिये आपके इस घर में 
हर रोज़ नयी धुल और नयी  अस्त-व्यस्तता दिखाई देती है

फुर्सत को दोनों हाथों से खींच कर गले लगा लो
उसे बुढापे के बिस्तर के लिए न छोड़ो
उस वक्त बहु के ताने ही बहुत होंगे
और अगर खुशकिस्मत हुए 
तो घर में फैला अकेलापन
चादर पे साथ लेटा अकेलापन
cupboard से झांकता अकेलापन

चाहो तो हर पल फुर्सत है
चाहो तो ताउम्र नहीं मिलेगी
ढूँढो तो हर पल फुर्सत है

अब जब उम्र है, वक्त है
अपना लो उसे
सीने से लगा लो उसे 





1 comment:

  1. yah to nischit hai
    aapkee kavitaa fursat mein nahee padhoongaa
    use priority samjhoongaa :)

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