Wednesday 21 December 2011

' दुःख बहुत हैं '


मैंने देखी हैं बड़ी दुखी जिंदगियां
हैरत इस बात की हैं
हर इक उस ज़िन्दगी में दुःख नदारद था
मैंने देखी हैं ऐसी कई बेमतलब की दुखी जिंदगियां

उन्हें शौक है दुःख पालने का
वो मौका ढूँढ़ते हैं, गम ढूँढने का
मैंने देखी हैं कई बेमतलब की दुखी जिंदगियां

वक्त की मरहम कहाँ काम करती हैं उन पर
वो तो सीचते हैं गमों को दिलों-दिल में
उन्हें डर है अकेले रह जाने का और
गम उनके साथी हैं

हैरत यही है की वो रोते हैं की दुःख बहुत हैं
' बोया पेड बाबुल का तो नीम कहाँ से होए'

 

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