Sunday, 6 January 2013

तो एक बार जोर से बोल दो

दिन भी थक जाता होगा
घर जा अपने, सो जाता होगा
सुना है की बिजी-बहुत रहता है
बतियाने के लिए पास बुलाओ
तो नखरे-बहुत करता है
जितने मुंह , उतनी बात है यहाँ
कोई कहे दिन, तो कोई कहे रात है यहाँ
सौ बातों की एक बात
poem है बकवास :)
बकवास भी अपने बात में एक बात होती है
उसकी एक पहचान, एक औकात होती है
औकात पे ना जाना यहाँ
सबको प्यारी है अपनी माँ यहाँ
फिर कहती हूँ वहीँ बात
poem है बकवास :)
अब जब पढ़ की चुके हो
तो एक बार जोर से बोल दो
जय श्याम बाबा की, ज़िला-खरवास !

पेन बलशाली

आज जब पेन उठाया है
तो ज़रूर कुछ क्रांतिकारी होगा

छत गिरेगी, कमरे की
मैं मरी मिलूंगी, पेन,बलशाली, मुंह के बल खड़ा होगा

Thursday, 13 December 2012

हाफ स्वेटर

जाड़ों ने आहट दे दी है
सर्दियां अब करीब हैं
बक्से, अलमारी खोलो
हाफ स्वेटर निकालो
सर्दियां अब करीब हैं

स्वेटर में दबी मिलेगी
कपूर की गोली
उसे सूंघने का मज़ा, कुछ और है

आज से चार सवेरे पहले
किसी दुपहिया चालक को
स्वेटर पहने देखा
तो सोचा, "गधा है"
आज देखा तो सोचा, "समझदार है"

अब मिलेंगी गरम मूंगफलियाँ
अब निकलेंगी रजाइयां
अब सिकेंगे हाथ तवे पर
अब चाय पीने का अलग होगा मज़ा
अब वक्त आ गया है सर्दियों का    

रवानगी

दिल तू हौले-हौले संभल जा
बात मान जा, दरखास्त मान जा

तुझे रास्तों पे सँभालते हुए ऐसे चलते हैं हम,
जैसे रूई के फोहे हाथ में ले रखे हों
डर सताता है, किसी के हाथ मारने
की कोशिश भर से ही
राख ना हो जाए यह दिल मेरा 


भला कब तक यूँ तुझे संभालें,
कब तक तुझे बचाते फिरें

इसीलिए कहती हूँ 
तू हौले हौले संभल जा
बात मान जा, दरखास्त मान जा

शिकायत मुझे, कुछ और भी है 
मसलन, तू क्यूँ उन लच्छेदार बातों में बार-बार आ जाता है 
तू क्यूँ उन रास्तों में जाता है 
जहाँ तेरे वास्ते सिर्फ फिसलन लिखी है 

गौरतलब यह भी है,
तेरी और मेरी कभी ज्यादा बनी नहीं
पब्लिक में मैंने तुझे भाव दिए नहीं
पर सवासेर तू भी था 
हाथ आए मौके, तुने भी गवाए नहीं

पर मैं समझती हूँ
तू अब सयाना हो चला है
उम्र भी गिनने लायक हो गई है
सफेद रेशमी धागे कहीं- कहीं दिखने लगे है 
मैं समझती हूँ 
तू वादों का पक्का हो चला है

फिर काहे का झगडा
और क्यूँ करें इतनी मगजमारी
आ पास बैठ, दो बातें कर ले
आ समझोता कर लें

मैं माफ़ी माँगूँ , तू माफ़ कर दे
मैं तेरी देखरेख से मुक्त हो जाऊं,
और तू मुझे उम्र के इस पड़ाव पर,
सुकून अदा कर दे


Wednesday, 12 December 2012

मेरे कातिल का नाम न पूछना
उसको नाम मैंने, अभी दिया नहीं
वो मुझसे जन्मा है
और मेरे साथ ही रवानगी है उस की

यह झुंझलाहट, ये बेबसी
अभी सन्देह मुझे भी है,
वो मददगार है या कातिल 

Monday, 29 October 2012

एकरंगी धुआं, लपेटे बहुरंगी ख्वाब

बादल सा उड़ता है ये धुंआ, मेरे कमरे में  
बादल में ख्याब के गुच्छे लगे हैं 
आंच की कमी है, अभी पके नहीं हैं 

हर कश के साथ, ख्वाब निकले
ख्वाबों से भर उठा है मेरा कमरा, 
ख़्वाबों की कमी कहाँ है?
सुना है, ज़िन्दगी हिम्मत की मोहताज़ है 

कश लगाता धुंआ, धुओं में मिलता धुंआ 
धुएँ के बादल छाए हैं दिमाक पर
उम्र भी धुँऐ सी उड़ रही है 
उन्ही धुओं में अपनी ज़गह बनता धुंआ 

एकरंगी धुआं, लपेटे बहुरंगी ख्वाब  

हम दोनों दौड़ रहे हैं, धुंआ हो जाने की दौड़ में 
दोनों को जल्दी है, खाक हो जाने की 
पर लगता है, मुझसे ज्यादा इसे थी
जैसे यह राख हुई है, मेरा भी यही अंत होगा 
मेरे जाने के बाद, थोड़ी न मेरा अस्तित्व होगा 
मैं यहाँ दिखती हूँ, क्यूंकि अभी जिंदा हूँ, 
सुनाई देती हूँ, क्यूंकि अभी जिंदा हूँ, 
मैं जो भी हूँ, सफल, असफल, इस दरमियान हूँ,
इस जलने और बुझने  के बीच 
मुझे एक गाने की पंक्तियाँ याद आ रही हैं 
"जीने वाले, सोच ले, यही वक्त है कर ले पूरी आरज़ू"





  

Saturday, 20 October 2012

ऊन उधेड़े, छंद बिखेरे

रात करे बात, हिसाब मांगे मिजाज़ 
धुन लपेटे, बुने-उधेड़े 
ऊन उधेड़े, छंद बिखेरे 

जिक्र आया, फ़िक्र आई 
बंद गला, इंग्लिश टाई 
ऊन उधेड़े, छंद बिखेरे 

अखबार श्रीमान , खबर बेईमान 
सच है बेकार, झूठ है असरदार 
क्या करे बेचारा, बेबसी का मारा 
ऊन  उधेड़े, छंद बिखेरे  

कुर्सी, मेज़, होते हैं पूरक 
सैयां रंगरेज़, जाने न मुरख 
आदत का मारा, दिल बेचारा 
ऊन  उधेड़े, छंद बिखेरे   

टोटकों में डूबा, चमत्कार ढूँढता 
चिलम, अफीम के नशे में, भगवान् ढूँढता 
मस्त फिर भी दिल मग्न 
ऊन  उधेड़े, छंद बिखेरे   



Kavyitri ko rat race kha gyi!

woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main  corporate kha gya us kavriti ko  par weekends to mere hain,  choices to meri hain  corporate me...