Thursday 20 September 2012

"नहीं "

माल कुछ ऐसा जिसे ग्राहक मिला नहीं
शेर कुछ ऐसे जिसे श्रोता मिला नहीं
नन्ही जानें कुछ ऐसी जिन्हें माँ नसीब हुई नहीं 
ज्ञान कुछ ऐसा जिसका मान हुआ नहीं 
बरतन ऐसे जो कभी बजे नहीं 
बच्चे ऐसे जो कभी रूसे नहीं 
मर्द कुछ ऐसे जो कभी हँसते नहीं  
राज़ कुछ ऐसे जो छुपाये छुपते नहीं
अफवाह कुछ ऐसी जो रुके रूकती नहीं
शामें कुछ ऐसी जो लाख कोशिशों बावजूद अभी तक ढली नहीं 
यादें कुछ ऐसी .... 
घटिया कविताएँ कुछ ऐसी जो जाने-अनजाने आपको पढ़नी पड़ी 
 :)



4 comments:

  1. घटिया कविताएँ कुछ ऐसी जो जाने-अनजाने आपको पढनी पढ़ी ...
    wah wah..

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  2. अच्छी प्रस्तुति| पर जाने अनजाने काम चलते रहते हैं

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Kavyitri ko rat race kha gyi!

woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main  corporate kha gya us kavriti ko  par weekends to mere hain,  choices to meri hain  corporate me...