कविता कविता होती है
और ज़िन्दगी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी कविता नहीं
जो जब चाहा, लिख दिया, जब चाहा, परे धर दिया
जो लिख दिया और निवृत हो गए
लिख दिया और भड़ास निकाल, शांत हो गए
काश ज़िन्दगी भी इतनी सीधी होती
मेरी ज़िन्दगी अगर इंसान की शक्ल में कहीं दिखाई दे
मैं भी अपनी भड़ास निकाल लूँ
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