हम देखते कितना कुछ
और सोचते कितना कम हैं
सामने वाली हमउम्र शादीशुदा लड़की को देख
मेरे दिमाक में वही ख़याल उसकी ज़िन्दगी को लेकर हर बार आते हैं
वही घिसे पिटे ख़याल जो मैं पहले भी सोच चुकी हूँ उसके बारे में
क्या मेरे इन 2-4 ख्यालों के अलावा वो और कुछ भी नहीं
यकीनन वो इन चंद ख्यालों की बनी पुतली तो है नही
फिर क्यूँ उसे मैं हर बार अपनी ही नज़र से देखती हूँ
अपने उन चाँद ख्यालों में लपेटकर
कैसा हो अगर कुदरत नाराज़ होकर
मुझसे मेरी देखने की शक्ति झीन ले
जब मैं कुछ नया सोचती ही नहीं
फिर बार बार देखने का क्या फायदा
सोचती हूँ, हद मार के 27-28 की उम्र के बाद
अगर हमसे हमारी आँखें छीन ली जाएँ
तो बुरा क्या है?
कहाँ इस उम्र के परे हम कुछ नया सोचना और समझना चाहते हैं
सो ले लो यह आँखें, कुछ पहचानना, सीखना अब बाकी न रहा है,
ये अब हमारे किस काम की
हम अपनी ही बनाई परिधि में घुमते रहते हैं
अपना नजरिया, अपनी मानसिकता,
अपनी धारणाएं, अपनी संकीर्णताएँ
के चश्मे लगा बैठे हैं हम
और सोचते कितना कम हैं
सामने वाली हमउम्र शादीशुदा लड़की को देख
मेरे दिमाक में वही ख़याल उसकी ज़िन्दगी को लेकर हर बार आते हैं
वही घिसे पिटे ख़याल जो मैं पहले भी सोच चुकी हूँ उसके बारे में
क्या मेरे इन 2-4 ख्यालों के अलावा वो और कुछ भी नहीं
यकीनन वो इन चंद ख्यालों की बनी पुतली तो है नही
फिर क्यूँ उसे मैं हर बार अपनी ही नज़र से देखती हूँ
अपने उन चाँद ख्यालों में लपेटकर
कैसा हो अगर कुदरत नाराज़ होकर
मुझसे मेरी देखने की शक्ति झीन ले
जब मैं कुछ नया सोचती ही नहीं
फिर बार बार देखने का क्या फायदा
सोचती हूँ, हद मार के 27-28 की उम्र के बाद
अगर हमसे हमारी आँखें छीन ली जाएँ
तो बुरा क्या है?
कहाँ इस उम्र के परे हम कुछ नया सोचना और समझना चाहते हैं
सो ले लो यह आँखें, कुछ पहचानना, सीखना अब बाकी न रहा है,
ये अब हमारे किस काम की
हम अपनी ही बनाई परिधि में घुमते रहते हैं
अपना नजरिया, अपनी मानसिकता,
अपनी धारणाएं, अपनी संकीर्णताएँ
के चश्मे लगा बैठे हैं हम
Nice Post :)http://hindi4tech.blogspot.com
ReplyDeletethanku :)
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