छुप के मिलना यहाँ हमारी कमज़ोरी समझा जाता है
बेइंसाफी सहना सहनशीलता का प्रमाण
दूसरों के मामले में दखल न देना समझदारी
चाहे दूसरा आपका सगा, खून का ही क्यूँ न हो
औरों की मदद करना अपना वक्त बर्बाद करना है
अनजान से बात करना महापाप
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छुपा दो हमका, बिठा दो हमको, ढक दो हमें , जला दो हमको
ख़तम कर दो किस्सा, जाओ अपने घर
तुम्हारा खुदा तुम्हारी राह देखता होगा
ख़तम कर दो किस्सा, जाओ अपने घर
तुम्हारा खुदा तुम्हारी राह देखता होगा
देखता होगा की तुम आये की नहीं सलामत
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मेरे देश में
ये पुल बड़े काम के हैं
ऊपर गाडी - घोड़े दौड़ते हैं
और नीचे जिंदगियां
-चाय, पुडी, नाई, मोची
टीवी, घर, बच्चे, ज़िन्दगी
रात में यही पुल पलंग बन जाते हैं
यही वो गरीब बेख़ौफ़ सोता है
खुदा भी जिसकी खेर नहीं लेता,
यह पुल हर रात, हर रोज लेता है
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स्याही घिस-घिस कर पन्ने नीले करती हूँ मैं,
कभी तो कुछ अच्छा लिखूं इस आस में लिखती हूँ मैं
दो लाइन rhyme में आने पर ख़ुशी मानती हूँ मैं
और फिर आगे कुछ नही लिख पाती हूँ मैं
लिखना छोड़ दूँ या ख़ुशी मनाना ?
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मैं अधपकी हूँ
मुझे में ज्यादा समझ नहीं
मैं ज्यादा सोचती नहीं
और कभी कभी मैं ज्यादा बोलती भी नहीं
मैं भागूं तो जग भागे
मैं गाऊं तो जग गाए
ऐसी मेरी कोई तमन्ना नहीं
मैं लिखूं तो जग पढ़े
ऐसी मेरी औकात नहीं
मैं लिखूं और मुझे पसंद ना आये
ऐसा अक्सर होता नहीं //
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आज फिर शाम आई
आज फिर अकेली ही चली गयी/
मैंने उसे कभी जल्दी में नहीं देखा
हाथ हिला के बुलाओ तो देखना आ भी जाएगी
एक प्याला चाय का रख ज़रा पूछो उससे
कितना कुछ कह देगी
एक मैं ही हूँ जो छुपा जाती हूँ
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सब रंग मेरे हैं
सब मौसम मेरे हैं
वो इन्द्रधनुष मेरा
रात मेरी, दिन मेरा,
यह सब होते हुए भी
मैं कहीं और ही busy थी
ये बच्चे मेरे, ये पति मेरा,
ये ज़मीन मेरी, ये पैसा मेरा
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स्याही सूख गयी कलम की
कितना वक्त हुआ कुछ लिखा जो नहीं
शाम होने को आ गयी
मेरे मन की कब शाम होगी
कब शाम होगी कि मैं सवेरा ला सकूँ
दिमाक तो थकना नहीं, दिल को ही थमना होगा
पर दिल से जिए ही कहाँ हैं
दिल से जीते तो खुद को जीते
ये किसकी ज़िन्दगी ओढ़ रखी है
जो किराए के घर सी महसूस होती है
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romance हर चीज़ में है
हर उम्र, infact हर पल में है
romance करो हर रात से, हर दिन , हर किताब , हर बात से
ऊपर बहुत अकेलापन है
मेरे पुराने नीचे जो रह गए
नीचे शोर था, ज़िन्दगी थी
यहाँ सिर्फ मैं, अकेली मैं हूँ
मुझे किसी की ज़रुरत कहाँ,
मैं तो खुद में ही खूब हूँ
मेरी कश्ती कहाँ गोते खाती है
आखिरी वक्त पर ही ये क्यूँ मुकुर जाती है
ज़िन्दगी से क्यूँ ये बार-बार धोखा खाती है
रोई रातों को क्यूँ पहले खुद उठती है फिर मुझे उठाती है
बातें, बातों से बातें और ढेर सारी बातें
यहाँ हर घर मजदूर का बनाया हुआ होता है
इस मजदूर का अपना घर अक्सर नहीं होता है
जिसने सैंकड़ों घर बनाये हो
खुद के लिए एक घर नहीं बना पाता
जो ताउम्र दूसरों के लिए घर बनाता हैं
अक्सर सड़कों पर ही मर जाता हैं
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romance हर चीज़ में है
हर उम्र, infact हर पल में है
romance करो हर रात से, हर दिन , हर किताब , हर बात से
ऊपर बहुत अकेलापन है
मेरे पुराने नीचे जो रह गए
नीचे शोर था, ज़िन्दगी थी
यहाँ सिर्फ मैं, अकेली मैं हूँ
मुझे किसी की ज़रुरत कहाँ,
मैं तो खुद में ही खूब हूँ
मेरी कश्ती कहाँ गोते खाती है
आखिरी वक्त पर ही ये क्यूँ मुकुर जाती है
ज़िन्दगी से क्यूँ ये बार-बार धोखा खाती है
रोई रातों को क्यूँ पहले खुद उठती है फिर मुझे उठाती है
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जीना भी बस एक आदत
ही तो बन जाता है
आदत जिसे हम बिना सोचे- पूछे
निभाये जाते हैं
आदमी खुद कहाँ जीता है
आदतें जीती हैं
आदमी आदतों का ढेर बन जाता है
फिर जीना या न जीना बराबर ही है
जीना आदत है
ना जीने की चाह रखना
भी एक आदत जान पड़ती है
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ही तो बन जाता है
आदत जिसे हम बिना सोचे- पूछे
निभाये जाते हैं
आदमी खुद कहाँ जीता है
आदतें जीती हैं
आदमी आदतों का ढेर बन जाता है
फिर जीना या न जीना बराबर ही है
जीना आदत है
ना जीने की चाह रखना
भी एक आदत जान पड़ती है
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बातें, बातों से बातें और ढेर सारी बातें
कभी बात से बात की है?
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खुद के साथ वक्त बिताना भी एक कला है
खुद का वक्त खुद ही खाना भी एक कला है
मुझ में कुछ भी स्थायी नहीं
भावनाएं, आदतें,बातें,
किस्से सुनना और सुनाना दोनों ही मज़ेदार है
किस्से कहना और बनाना दोनों ही कला है
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रात दिन रात दिन आते जाते हैं
मेरी उम्र खाते जाते हैं
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मैंने जो माँगा मुझे मिला,
कोई होगा मुझ सा खुशनसीब !
जब मैंने ही मांगी गलत चीज़,
फिर उसे कह दूंगी - नसीब !
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मैंने जो माँगा मुझे मिला,
कोई होगा मुझ सा खुशनसीब !
जब मैंने ही मांगी गलत चीज़,
फिर उसे कह दूंगी - नसीब !
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मैंने तुम्हे सुना, मैंने उसे देखा
सुना, देखा, judge किया
मैंने खुद को ना देखा, ना सुना
ना कभी judge किया
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आप अपने दिल की बात ठुकरा नहीं सकते
दिल सुनने की आदत डालो
मर्ज़ पकड़ो और सवाल करो
जितना सीधा सवाल होगा
उतना ही सीधा होगा जवाब
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रात दिन, रात दिन का ये चक्कर,
उड़ा ले जाता है पूरी ज़िन्दगी
उन्ही रास्तों और बातों के घेरे
में दम तोड़ देती है ये ज़िन्दगी
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दिल घुमक्कड़, तो इंसान घुमक्कड़
एक जगह ना टिकना is घुमक्कड़
जिसका हर जगह ही घर बसाने का मन करे
वो है घुमक्कड़
दो लफ्ज़ कहने थे, दो बातों में उलझ गए,
हर ख्याल उलझा सा, हर बात अटकी सी
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वो ख्याल ही इतना प्यारा था की हम बातों में ना सजा पाए
वो रात ही इतनी हसीन थी की सुबह होने की हमें परवाह ही कहाँ थी
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जब जीने में मज़ा आने लगे समझ जाओ वही असल जीना है
बाकी सब मुर्दा दिन हैं, मुर्दा रातें हैं और आस-पास चलती लाशें
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कुछ मर गया, कब का
किसी की तो मौत हुई, किसी साल
कोई तो है जो नहीं जीता
कोई तो था जो अब नहीं है
ज़िन्दगी इतनी बेमतलब, इतनी नीरस, इतनी खोई हुई सी कब हो गयी
आत्म की मौत कब हो गयी
ये जीना मुझे रास नहीं, कोई मरने का वक्त और पता बता दे
आओ ज़िन्दगी चुने
मेरे सामने कई पत्ते हैं
कई तरह की ज़िन्दगी के
आओ एक पत्ता चुने
आओ ज़िन्दगी चुने
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अपनी ज़िन्दगी खोटा सिक्का निकली
जहाँ चाहा, वहीँ नहीं चली
अपनी ज़िन्दगी ऐसी निकली
जैसे नल की टूटी
खुद से ही बहते पानी का हिसाब नहीं
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रात और रातों की हर बात
बात और बातों में छुपे सवाल
सवाल औए सवालों में लिपटे ख़याल
ख़याल और अनगिनत ख्यालों में सिमटा संसार
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यादें क्या होंगी?
अगर कोई याद ही न करे
यादों का तो कोई gender नहीं होता
कोई confirm quality नहीं होती
यादें तो याद करने वालों से हैं
उनकी मेहेरबानी से हैं
सुना, देखा, judge किया
मैंने खुद को ना देखा, ना सुना
ना कभी judge किया
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आप अपने दिल की बात ठुकरा नहीं सकते
दिल सुनने की आदत डालो
मर्ज़ पकड़ो और सवाल करो
जितना सीधा सवाल होगा
उतना ही सीधा होगा जवाब
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रात दिन, रात दिन का ये चक्कर,
उड़ा ले जाता है पूरी ज़िन्दगी
उन्ही रास्तों और बातों के घेरे
में दम तोड़ देती है ये ज़िन्दगी
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दिल घुमक्कड़, तो इंसान घुमक्कड़
एक जगह ना टिकना is घुमक्कड़
जिसका हर जगह ही घर बसाने का मन करे
वो है घुमक्कड़
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दो लफ्ज़ कहने थे, दो बातों में उलझ गए,
हर ख्याल उलझा सा, हर बात अटकी सी
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वो ख्याल ही इतना प्यारा था की हम बातों में ना सजा पाए
वो रात ही इतनी हसीन थी की सुबह होने की हमें परवाह ही कहाँ थी
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जब जीने में मज़ा आने लगे समझ जाओ वही असल जीना है
बाकी सब मुर्दा दिन हैं, मुर्दा रातें हैं और आस-पास चलती लाशें
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कुछ मर गया, कब का
किसी की तो मौत हुई, किसी साल
कोई तो है जो नहीं जीता
कोई तो था जो अब नहीं है
ज़िन्दगी इतनी बेमतलब, इतनी नीरस, इतनी खोई हुई सी कब हो गयी
आत्म की मौत कब हो गयी
ये जीना मुझे रास नहीं, कोई मरने का वक्त और पता बता दे
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आओ ज़िन्दगी चुने
मेरे सामने कई पत्ते हैं
कई तरह की ज़िन्दगी के
आओ एक पत्ता चुने
आओ ज़िन्दगी चुने
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अपनी ज़िन्दगी खोटा सिक्का निकली
जहाँ चाहा, वहीँ नहीं चली
अपनी ज़िन्दगी ऐसी निकली
जैसे नल की टूटी
खुद से ही बहते पानी का हिसाब नहीं
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रात और रातों की हर बात
बात और बातों में छुपे सवाल
सवाल औए सवालों में लिपटे ख़याल
ख़याल और अनगिनत ख्यालों में सिमटा संसार
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यादें क्या होंगी?
अगर कोई याद ही न करे
यादों का तो कोई gender नहीं होता
कोई confirm quality नहीं होती
यादें तो याद करने वालों से हैं
उनकी मेहेरबानी से हैं
वैसे तो सभी कुछ अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteलेकिन ये शेर मुझे बहुत पसंद आया
दो लफ्ज़ कहने थे, दो बातों में उलझ गए,
हर ख्याल उलझा सा, हर बात अटकी सी
बहुत सुंदर
शुभकामनाये
दिल सुनने की आदत डालो
ReplyDeleteमर्ज़ पकड़ो और सवाल करो
जितना सीधा सवाल होगा
उतना ही सीधा होगा जवाब
दिल से लिखी गयी और दिल पर असर करने वाली रचना , बधाई तो लेनी ही होगी
रात दिन, रात दिन का ये चक्कर,
ReplyDeleteउड़ा ले जाता है पूरी ज़िन्दगी
उन्ही रास्तों और बातों के घेरे
में दम तोड़ देती है ये ज़िन्दगी
देखे जिए से विचारों की सहज भावाभिव्यक्ति...... बहुत सुंदर
सुंदर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखती है आप,लिखती रहिये,एक बात और आप अधपकी बिलकुल नहीं है,कई समझदारों से ज्यादा समझ रखती है आप......
ReplyDelete