आज फिर कलम उठायी
आज फिर कुछ लिख न पाई
आज फिर जी चाहा उड़ जाऊं , भाग जाऊं
आज फिर यहीं इसी कमरे में सो गयी
आज फिर गुस्सा आया
आज फिर उसे ज़ाहिर किया
आज फिर मौका मिला और उसका लुफ्त उठाया
आज फिर दबे हुए को और दबाया
आज फिर दोस्तों की याद आई, बात आई
आज फिर उन्हें फ़ोन न मिलाया
आज मैं एक दिन और बूढी हो गयी
आज एक दिन और मौत के करीब पहुंच गयी
आज फिर खुद से पूछा
आज फिर खुद से जवाब छिपाया
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