हम जो कभी बहुत करीब थे
साथ दिन काटते थे
आज हफ़्तों - हफ़्तों बात भी नहीं करते
हम जो कभी साथ थे, एक दोसरे को 'बचाया' करते थे,
आज दूर रहते हुए भी फ़ोन पे लड़ लेते हैं
हम जो कभी, जब साथ थे, खाने पे एक दुसरे का इंतज़ार करते थे
आज, सवेरे से उसने कुछ खाया की नहीं, पूछते भी नही
मैं जब साथ थी, किसे serve कर रही थी-
खुद को या उस 'साथ' को ?
खुद को- हर 'साथ' में हम खुद को ही serve कर रहे होते हैं
साथ छुटा, और आदतें जो साथ पाली थी वो भी छुटी
कहा था कुछ न बदलेगा तेरे दूर रहने से
पर सब बदल जाता है
अब हम लड़ते हैं, हफ़्तों सुध नहीं लेते, खाने का नहीं पूछते,
फोर्मल हो गए हैं हम,
कुछ कहने-पूछने से पहले दो बार सोचते हैं
और उसकी हर बात को याद रखते हैं
क्यूंकि इन दिनों हम कम बोलते हैं
साथ दिन काटते थे
आज हफ़्तों - हफ़्तों बात भी नहीं करते
हम जो कभी साथ थे, एक दोसरे को 'बचाया' करते थे,
आज दूर रहते हुए भी फ़ोन पे लड़ लेते हैं
हम जो कभी, जब साथ थे, खाने पे एक दुसरे का इंतज़ार करते थे
आज, सवेरे से उसने कुछ खाया की नहीं, पूछते भी नही
मैं जब साथ थी, किसे serve कर रही थी-
खुद को या उस 'साथ' को ?
खुद को- हर 'साथ' में हम खुद को ही serve कर रहे होते हैं
साथ छुटा, और आदतें जो साथ पाली थी वो भी छुटी
कहा था कुछ न बदलेगा तेरे दूर रहने से
पर सब बदल जाता है
अब हम लड़ते हैं, हफ़्तों सुध नहीं लेते, खाने का नहीं पूछते,
फोर्मल हो गए हैं हम,
कुछ कहने-पूछने से पहले दो बार सोचते हैं
और उसकी हर बात को याद रखते हैं
क्यूंकि इन दिनों हम कम बोलते हैं
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