मैं खुद के लिए लिखती हूँ
फिर वो सब के लिए कैसे हो सकता है
और अगर मैं सब के लिए लिखती हूँ
फिर वो मेरा कैसे हो सकता है
मैं किस के लिए लिखती हूँ
मेरा श्रोता कौन है
अक्सर होता यूँ है
मैं लेखक, और मैं ही श्रोता
मैं लेखक, और मैं ही श्रोता
होता यूँ भी है
दूसरों के लिखे हुए में भी
मैं थी लेखक और मैं ही श्रोता
यह रचना अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब है ....
ReplyDeleteशुभकामनायें तृप्ति !
:) shukriya..
Deleteखुद से अच्छा श्रोता और पाठक कोई नहीं हो सकता। क्योंकि इस तरह खुद की कमियाँ भी दिखाई देंगी और उन्हें दूर करने का रास्ता भी।
ReplyDeleteसादर
:) aapne padhi uska shukriya..
Deleteजो पन्ने पर उतर आई वो सबके लिए होती है ...जो सुन सका वो श्रोता नहीं तो वो है कुछ खोता !
ReplyDelete:) pasand aayi mujhe yeh baat...bahaut bahaut shukriya :)
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