रेत पे चलना इतना सुकूनदेह क्यूँ होता है
पैरों तले वो गीली मिटटी का एहसास
वो कदम रखने पर पैरों का धसना ज़मीन पे
मुझे पसंद है समुन्दर की तरफ मुंह करके खड़े हो जाना
उसे निहारना जो अंतहीन लगता है
उसे निहारना जो अंत लगता है
वो शून्यता, वो विचारहीनता, जिससे मैं भर जाती हूँ
वहां आके जैसे सब ठिटक जाता है, बेमानी जान पड़ता है
जैसे मौत खड़ी हो सामने, जैसे मैं मौत को निहार रही हूँ
एक दिन मुझे भी वहीँ जाके मिल जाना है, जहाँ से मैं आई हूँ
पर इस सुकून का इक कतरा अपने साथ ले जाना चाहती हूँ
आज के लिए,
तब तक के लिए जब तक मैं फिर यहाँ लौट के ना आऊं
फिर इस पानी को ना निहारूं
वो लहरों का तेज़ी से मेरी और बढ़ना
वो पानी का पैरों पे चढ़ना
और जाते वक्त पैरों नज़दीक सीपियाँ छोड़ जाना
मैं फिर दूसरी लहर का इंतज़ार करुँगी
ताकि वो अपनी सीपियाँ ले जाएँ
हर चीज़ वहीँ रहे जहाँ के लिए वो बनी है