जुगनुओं के दम पर चहकती रात
बावरी हो, उसके सपनों में दौड़ती रात
ख्वाबों की क्यारियाँ बनती, सपने सींचती रात
उन्ही में से कुछ सपनों को,
उसके सिरहाने छोड़ गयी थी रात
अब वो, बन बावरी है घूमती,
ढूँढती है रात
शाम ढले, जाने कब है आती
और उसके उठने से पहले, चली जाती है रात
बावरी हो, उसके सपनों में दौड़ती रात
ख्वाबों की क्यारियाँ बनती, सपने सींचती रात
उन्ही में से कुछ सपनों को,
उसके सिरहाने छोड़ गयी थी रात
अब वो, बन बावरी है घूमती,
ढूँढती है रात
शाम ढले, जाने कब है आती
और उसके उठने से पहले, चली जाती है रात
काफी वक्त पहले आपने मेरे ब्लॉग पर आमद दर्ज कराई थी। आपके कमेंट को पढ़कर आपके ब्लॉग तक पहुंचा।
ReplyDeleteरात ढलती तो है,
पर फिर आ जाती है एक रात
अच्छी कविता
बन बावरी है घूमती...ढूँढती है रात....
ReplyDeletenice lines