कभी मन करता है सिनेमा हॉल के अँधेरे में गुम हो जाऊं
सिनेमा हॉल भी सही जगह है
अनजान लोगों के बीच भी इतना सुकून महसूस होता है
अँधेरे में कोई मुझसे कुछ पूछता नहीं, कहता नहीं
बस एक भीड़ आके बैठी हैं इक साथ ,
चाँद घंटो बाद , सब ने यहाँ से निकल जाना है,
फिर कभी एक दुसरे को ना देखने का वादा लिए
अँधेरे में कोई मुझसे कुछ पूछता नहीं, कहता नहीं
बस एक भीड़ आके बैठी हैं इक साथ ,
चाँद घंटो बाद , सब ने यहाँ से निकल जाना है,
फिर कभी एक दुसरे को ना देखने का वादा लिए
कभी-कभी हलकी नींद में कुछ चेहरे दिखते हैं
कुछ न कुछ करते हुए, जैसे मैं कोई पिक्चर देख रही हूँ , उनकी पिक्चर
वो चेहरे मेरी जान पहचान से अलग, कोई और ही होते हैं
जिन्हें मैं जानती नहीं, कभी देखा नहीं
और नींद खुलते के साथ गायब से हो जाते हैं, छुमंतर
वो मेरी कच्ची नींद के साथी हैं
जागते हुए भी, अक्सर, कुछ लोग दिमाक में रहते हैं
कुछ लोग जाने पहचाने ,
उस दिन उनका घर, मेरा दिमाक ही होता है
दिमाक का दही मुख्यतः इन्ही हालातों में होता है
वो चेहरे मेरी जान पहचान से अलग, कोई और ही होते हैं
जिन्हें मैं जानती नहीं, कभी देखा नहीं
और नींद खुलते के साथ गायब से हो जाते हैं, छुमंतर
वो मेरी कच्ची नींद के साथी हैं
जागते हुए भी, अक्सर, कुछ लोग दिमाक में रहते हैं
कुछ लोग जाने पहचाने ,
उस दिन उनका घर, मेरा दिमाक ही होता है
दिमाक का दही मुख्यतः इन्ही हालातों में होता है
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