बदल कड़के,मेघ बरसे
हम तरसे, हम तरसे
अब जब यूँ है तरसे
जी करता है, निकल पड़े घर से
अब जब यूँ है तरसे
जी करता है , गुम हो जाएँ इधर से
हम गुम हों, लोग गुमशुदा की रपट लिखवायें
पर हम लौट के ना आयें
भाग जाने में जो मज़ा है
उसका स्वाद क्यूँ गवाया जाए
पलायनवादी परंपरा तो हमरी नसों में है
हमने कई बार पलायन किया है
इस बार एक नयी शुरुवात करना चाहते हैं , भाग कर
इस बार इक नयी कहानी गढ़ना चाहते हैं, भाग कर
Nice tripti ji..
ReplyDeleteohh,i love u seema jee:)
ReplyDelete