Saturday, 21 July 2012

डर लगता है ज़िन्दगी मात दे देगी 
यहीं कहीं उलझी रहती हूँ 
फिर कभी एकदम से याद आता है, डर हावी होता है 

उलझना है तो उससे उलझूं 
गिडगिडाना है तो उसके सामने गिडगिडाऊँ 
ललकारना है तो उसे ललकारूं 

ज़िन्दगी- ये कहानी तेरी और मेरी है 

ये झगडा तेरा और मेरा है 
ये खुशगवार मौसम तेरे और मेरे बीच के हैं 
बाकी सब आने जाने हैं, मेहमान हैं 
मैं बाकियों में पड़ कर तुझे नही भूलना चाहती 
मुझे डर है तू मात न दे जाए 



5 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  2. "जिन्दगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी
    मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी "
    मौत से क्या डरना ये तो एक दिन आनी ही है जब तक जियो खुल के जियो

    वैसे आपका लेख बहुत सुंदर है ! लिखते रहिये -
    धन्यवाद !

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  3. हर पल जिंदगी की सिढ़िओं से बातें करती लगी आपकी ये रचना | रुकना नहीं , आगे तो जाना ही है और देखना है मुस्काता हुआ आसमान |

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  4. जिंदगी से प्यार हो जाए तो जिंदगी खुद आपके हाथों ख़ुशी ख़ुशी खुद को हार बैठेगी ...
    और जहाँ प्यार है वहाँ संघर्ष तो होता ही है ..
    सुंदर भावाभिव्यक्ति !

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई, सादर.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .

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