डर लगता है ज़िन्दगी मात दे देगी
यहीं कहीं उलझी रहती हूँ
फिर कभी एकदम से याद आता है, डर हावी होता है
उलझना है तो उससे उलझूं
गिडगिडाना है तो उसके सामने गिडगिडाऊँ
ललकारना है तो उसे ललकारूं
ज़िन्दगी- ये कहानी तेरी और मेरी है
ये झगडा तेरा और मेरा है
ये खुशगवार मौसम तेरे और मेरे बीच के हैं
बाकी सब आने जाने हैं, मेहमान हैं
मैं बाकियों में पड़ कर तुझे नही भूलना चाहती
मुझे डर है तू मात न दे जाए
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
"जिन्दगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी
ReplyDeleteमौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी "
मौत से क्या डरना ये तो एक दिन आनी ही है जब तक जियो खुल के जियो
वैसे आपका लेख बहुत सुंदर है ! लिखते रहिये -
धन्यवाद !
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हर पल जिंदगी की सिढ़िओं से बातें करती लगी आपकी ये रचना | रुकना नहीं , आगे तो जाना ही है और देखना है मुस्काता हुआ आसमान |
ReplyDeleteजिंदगी से प्यार हो जाए तो जिंदगी खुद आपके हाथों ख़ुशी ख़ुशी खुद को हार बैठेगी ...
ReplyDeleteऔर जहाँ प्यार है वहाँ संघर्ष तो होता ही है ..
सुंदर भावाभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई, सादर.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .