बादल सा उड़ता है ये धुंआ, मेरे कमरे में
हम दोनों दौड़ रहे हैं, धुंआ हो जाने की दौड़ में
दोनों को जल्दी है, खाक हो जाने की
बादल में ख्याब के गुच्छे लगे हैं
आंच की कमी है, अभी पके नहीं हैं
हर कश के साथ, ख्वाब निकले
ख्वाबों से भर उठा है मेरा कमरा,
ख़्वाबों की कमी कहाँ है?
सुना है, ज़िन्दगी हिम्मत की मोहताज़ है
कश लगाता धुंआ, धुओं में मिलता धुंआ
धुएँ के बादल छाए हैं दिमाक पर
उम्र भी धुँऐ सी उड़ रही है
उम्र भी धुँऐ सी उड़ रही है
उन्ही धुओं में अपनी ज़गह बनता धुंआ
एकरंगी धुआं, लपेटे बहुरंगी ख्वाब
हम दोनों दौड़ रहे हैं, धुंआ हो जाने की दौड़ में
दोनों को जल्दी है, खाक हो जाने की
पर लगता है, मुझसे ज्यादा इसे थी
जैसे यह राख हुई है, मेरा भी यही अंत होगा
मेरे जाने के बाद, थोड़ी न मेरा अस्तित्व होगा
मैं यहाँ दिखती हूँ, क्यूंकि अभी जिंदा हूँ,
सुनाई देती हूँ, क्यूंकि अभी जिंदा हूँ,
मैं जो भी हूँ, सफल, असफल, इस दरमियान हूँ,
इस जलने और बुझने के बीच
मुझे एक गाने की पंक्तियाँ याद आ रही हैं
"जीने वाले, सोच ले, यही वक्त है कर ले पूरी आरज़ू"
जैसे यह राख हुई है, मेरा भी यही अंत होगा
मेरे जाने के बाद, थोड़ी न मेरा अस्तित्व होगा
मैं यहाँ दिखती हूँ, क्यूंकि अभी जिंदा हूँ,
सुनाई देती हूँ, क्यूंकि अभी जिंदा हूँ,
मैं जो भी हूँ, सफल, असफल, इस दरमियान हूँ,
इस जलने और बुझने के बीच
मुझे एक गाने की पंक्तियाँ याद आ रही हैं
"जीने वाले, सोच ले, यही वक्त है कर ले पूरी आरज़ू"
bahut sundar srijan, badhai.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें , आभारी होऊंगा.