डर लगता है ज़िन्दगी मात दे देगी
यहीं कहीं उलझी रहती हूँ
फिर कभी एकदम से याद आता है, डर हावी होता है
उलझना है तो उससे उलझूं
गिडगिडाना है तो उसके सामने गिडगिडाऊँ
ललकारना है तो उसे ललकारूं
ज़िन्दगी- ये कहानी तेरी और मेरी है
ये झगडा तेरा और मेरा है
ये खुशगवार मौसम तेरे और मेरे बीच के हैं
बाकी सब आने जाने हैं, मेहमान हैं
मैं बाकियों में पड़ कर तुझे नही भूलना चाहती
मुझे डर है तू मात न दे जाए