आसमान के परे क्या है?
भगवान् की बस्ती?
परियों की हस्ती ?
या अथाह फैला स्याह अँधेरा?
मेरे भीतर क्या धरा है?
कोई आत्मा या छोटे छोटे cells की फैक्ट्री
क्या पता? और क्या लेना मुझे?
क्या ज़रूरी है और क्या व्यर्थ ?
woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main corporate kha gya us kavriti ko par weekends to mere hain, choices to meri hain corporate me...
:)
ReplyDeleteजैसा भीतर है वैसा ही बाहर है ...वैसे ठीक कहा आपने हमें क्या लेना-देना !
ReplyDeleteजी आपने पढ़ी उसका शुक्रिया :)
Deleteगज़ब की कविता लिखती हैं आप...
ReplyDeleteआसमान के परे क्या है?
भगवान् की बस्ती?
परियों की हस्ती ?
या अथाह फैला स्याह अँधेरा?
मेरे भीतर क्या धरा है?
कोई आत्मा या छोटे छोटे cells की फैक्ट्री
बार बार पढ़ने को दिल करता है...
आप रेगुलर लिखा कीजिये...बहुत अच्छा लिखती हैं!
बहुत बहुत शुक्रिया आपका :)
Deleteबिल्कुल नयी और ताजगी भरी रचना... सुन्दर प्रयास.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका :)
DeleteJosh hai iss mein !
ReplyDeleteजी शुक्रिया :)
Deleteहमें तो है लेना देना ...
ReplyDelete:)