Sunday, 17 June 2012

आसमान के परे क्या है?
भगवान् की बस्ती?
परियों की हस्ती ?
या अथाह  फैला स्याह अँधेरा?

मेरे भीतर क्या धरा है?
कोई आत्मा या छोटे छोटे cells की फैक्ट्री

क्या पता? और क्या लेना मुझे?
क्या ज़रूरी है और क्या व्यर्थ ?





10 comments:

  1. जैसा भीतर है वैसा ही बाहर है ...वैसे ठीक कहा आपने हमें क्या लेना-देना !

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    1. जी आपने पढ़ी उसका शुक्रिया :)

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  2. गज़ब की कविता लिखती हैं आप...

    आसमान के परे क्या है?
    भगवान् की बस्ती?
    परियों की हस्ती ?
    या अथाह फैला स्याह अँधेरा?

    मेरे भीतर क्या धरा है?
    कोई आत्मा या छोटे छोटे cells की फैक्ट्री

    बार बार पढ़ने को दिल करता है...
    आप रेगुलर लिखा कीजिये...बहुत अच्छा लिखती हैं!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका :)

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  3. बिल्कुल नयी और ताजगी भरी रचना... सुन्दर प्रयास.

    शुभकामनायें.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका :)

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  4. हमें तो है लेना देना ...
    :)

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Kavyitri ko rat race kha gyi!

woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main  corporate kha gya us kavriti ko  par weekends to mere hain,  choices to meri hain  corporate me...