वो बचपन में ऊन के धागे
उँगलियों में फसा के
खेला करते थे ना
ज़िन्दगी कुछ वैसी ही
महसूस होती है इन दिनों मुझे
यह कैसे चक्करघिन्नी है
जिसमें घुस तो गयी हूँ मैं
पर इससे निकलना नहीं आता
क्या हम सब अभिमन्यु हैं ?
माँ के पेट से
बस आधा ही पाठ सीख के आये हैं?
उँगलियों में फसा के
खेला करते थे ना
ज़िन्दगी कुछ वैसी ही
महसूस होती है इन दिनों मुझे
यह कैसे चक्करघिन्नी है
जिसमें घुस तो गयी हूँ मैं
पर इससे निकलना नहीं आता
क्या हम सब अभिमन्यु हैं ?
माँ के पेट से
बस आधा ही पाठ सीख के आये हैं?
Very well said
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