Friday, 16 May 2014

अभिमन्यु

वो बचपन में ऊन के धागे
उँगलियों में फसा के
खेला करते थे ना
ज़िन्दगी कुछ वैसी ही
महसूस होती है इन दिनों मुझे

यह कैसे चक्करघिन्नी है
जिसमें घुस तो गयी हूँ मैं
पर इससे निकलना नहीं आता
क्या हम सब अभिमन्यु हैं ?
माँ के पेट से
बस आधा ही पाठ सीख के आये हैं?




1 comment:

Kavyitri ko rat race kha gyi!

woh kavyitri kahan gyi use dhondti hun main  corporate kha gya us kavriti ko  par weekends to mere hain,  choices to meri hain  corporate me...