इतना बदल जाओ, की खुद को पहचान ही न पाओ
गलतियां इतनी बार दोहराओ, की ठूठ हो जाओ
मैं उस परे खड़ी हूँ, जिधर से लगभग कुछ महसूस नहीं होता
कुछ टूटने की देर है, फिर होश आएगा
कुछ चटकने की देर है, फिर महसूस होगा
ऐसा चटकना अक्सर ख़ामोशी से होता है !!
गलतियां इतनी बार दोहराओ, की ठूठ हो जाओ
मैं उस परे खड़ी हूँ, जिधर से लगभग कुछ महसूस नहीं होता
कुछ टूटने की देर है, फिर होश आएगा
कुछ चटकने की देर है, फिर महसूस होगा
ऐसा चटकना अक्सर ख़ामोशी से होता है !!
बहुत खूब
ReplyDeleteसादर
:)dhanyavad..
ReplyDeleteइतना बदल जाओ, की खुद को पहचान ही न पाओ ख़ामोशी से
ReplyDeleteNice
:) padne ka shukriya jee
Deleteऐसी खामोशियाँ अक्सर जेहन में तूफानी दौर की शुरुआत होती हैं..
ReplyDelete:) honi to chahiye, na ho to bura hai...padne ke bahaut bahaut shukriya
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