Wednesday 22 February 2012

'उनका' खून

उन्हें लगता है मैं 'उनकी' बेटी हूँ, 'उनका' खून हूँ,
माफ़ करना, पर मेरे पास पैदा होने का कोई और तरीका न था,
आप नहीं होते तो कोई और होता

मेरे अपने बच्चे होंगे, अगर कभी
मैं उन्हें पड़ोस और road के बच्चों से ज्यादा प्यार दूंगी
ज्यादा ख़याल रखूंगी उनका,
उनके खर्चे और नखरे उठाऊंगी


क्यूँ?
बच्चे ख़ुशी देते हैं, जीने का मकसद/बहाना बन जाते हैं,
बच्चों के बिना बड़ा अकेलापन है,
जीवन निरर्थक है
या ये कह लो
की बच्चों का होना कुदरत का तरीका है
संसार की निरंतरता कायम रखने का
बात इतनी है -आपको ख़तम होना है तो किसी और को आना है
फिर उसके भी किसी और को आना है
कुदरत के पास और क्या बेहतर तरीका था,
जीवन को पनपते रहने देने का
नयापन लाते रहने का

बुढा पेड़ मर जाता है
बीज छोड़ जाता है
उसकी जगह कई और छोटे पौधे उग आते हैं
हम तो सिर्फ एक जरिया हैं, माध्यम हैं

ये जो अपने बच्चों को दुखी देखकर, जी भर आता है
उनके होने से हमारी आँखों की चमक बरकरार रहती है
ये भाव जो अपने बच्चों को देखकर उमड़ते हैं
क्या नहीं है ये सब कुदरत का खेल?

इंसान होने और पलने फूलने का जो मौका मुझे मिला है
मुझसे पैदा हुए को भी मिले

इसी तरह, हर बच्चा पैदा हुआ है
कुछ अधिकारों के साथ,वो उसे मिले
चाहे वो मेरा खून न हो,
इंसान का बच्चा है , तो मेरे खून को जो चीज़ें समाज मुहैया कराता है
उसे भी कराये
समाज कभी तो इन्साफ मुहैया कराए





6 comments:

  1. कमाल की कविता है!!

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  2. :)shukriya, bahaut bahaut shukriya.

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  3. कमाल की कविता है !! हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा :) :p :)

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    1. tumhe phir se block karna hoga, upadravi tatva :)

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  4. बहुत खूब । विचारोत्तेजक रचना ।

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    1. :) shukriya. accha laga mujhe aapne padha, uske liye hi dhanyavaad.

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